July 1, 2025
Shree ShreeYada Mata ki Katha /श्री श्रीयादे माता का सत्य कथा
कुम्हार प्रजापति धर्म की संस्थापक भक्त शिरोमणि श्री श्रीयादे माता का जन्म सतयुग में गुजरात के पावन प्रभास क्षेत्र में हुआ था। इनके पिता का नाम रिधेश्वर लायड जी तथा माता जी का नाम सेजु बाई था। श्री श्रीयादे बचपन से धर्म भीरु थी । श्री श्रीयादे का विवाह प्राचीन युग मे हिरण्यखण्ड जो अब तालालागिर ( गुजरात) के सोमजी कुम्हार एवं माता परमेश्वरी के पुत्र सांवत जी के साथ हुआ था
श्री श्रीयादे माता के एक पुत्र हुआ, जिसका नाम गौतम था । तालालागिर हिरण्यकश्यप की राजधानी के अंतर्गत आता था। हिरण्यकश्यप को ब्रह्माजी ने उसकी कठोर तपस्या के कारण एक वरदान दिया था की वह ना दिन, ना रात में,ना आकाश में, ना पाताल में, ना सुबह के समय, ना शाम के समय, ना मनुष्य के हाथों से, ना पशु से और ना ही किसी अस्त्र या शस्त्र आदि से मर पाएगा। ऐसा अमरता जैसा वरदान पाकर हिरण्यकश्यप ने प्रजा पर घोर अत्याचार करना प्रारंभ कर दिया । सभी प्रकार के धार्मिक कार्यो पर पाबंदी लगा दी और खुद को भगवान घोषित कर दिया ।
सांवत जी मिटटी के बर्तन बनाने का काम करते थे। माँ श्री श्रीयादे नित्य प्रतिदिन भगवान की पूजा करती थी और पूजा के पश्चात भगवान की मूर्ति को हिरण्यकश्यप के डर से पानी से भरे मटके में रख देती थी।
हिरण्यकश्यप के अत्याचार से प्रजा को बचाने के लिए श्री श्रीयादे माता मिटटी के बर्तन घर घर लेकर जाती और हर घर की महिलाओं को भगवान का जाप करने की प्रेरणा देती थी। श्रीयादे माता के धर्म के प्रचार की खबर हिरण्यकश्यप तक पहुंची तो एक दिन भेष बदलकर सुबह सुबह श्री श्रीयादे माता की झोपड़ी के पास पानी पीने के बहाने से पहुंचा। उस समय श्री श्रीयादे माता भगवान की पूजा कर मूर्ति मटके के अंदर रख रही थी। हिरणकश्यप को श्री श्रीयादे माता ने अपनी शक्ति से पहचान लिया था। उसने उसी मटके का पानी हिरण्यकश्यप को पिलाया, उसी पानी के जल प्रभाव से हिरण्यकश्यप की पत्नी कुमदा ने प्रहलाद को जन्म दिया।
प्रहलाद ने जन्म से सात दिन तक अपनी माता का दूध नही पिया। हिरण्यकश्यप ने पूरे राज्य में मुनादी करवाई की जो स्त्री प्रहलाद को अपना दूध पिलायेगी उसको इनाम दिया जाएगा। राज दरबार की स्त्रियों ने प्रयास किया लेकिन प्रहलाद ने दूध नही पिया। सबसे अन्त में श्री श्रीयादे माता ने हिरण्यकश्यप के महल में जाकर प्रहलाद को अपना दूध पिलाया और हिरण्यकश्यप की पत्नी कुमदा को भगवान का जाप मन ही मन मे करने की प्रेरणा दी और उसके पुत्र का नाम प्रहलाद रखा।
समय बीतता गया, एक दिन प्रहलाद अपने सैनिको के साथ गुरुकुल जा रहा था, उसने मार्ग में देखा की मिटटी के बर्तन आग में पकाए जा रहे है और श्री श्रीयादे माता हरि नाम का जाप कर तपस्या कर रही है। भगवान का नाम सुनकर हिरण्यकश्यप पुत्र प्रहलाद क्रोधित हुआ और बोला इस धरती का भगवान मेरा पिता है तुम किसी दूसरे भगवान का नाम नही ले सकती।
श्री श्रीयादे माता ने अपनी आँखें खोली ओर प्रहलाद को बताया की इस आग की न्याव में एक मटके में बिल्ली के बच्चे जीवित रह गए है, उनकी रक्षा के लिए हरि से प्रार्थना कर रही हूँ की – “हे भगवान इस दहकती आग को शान्त करो।” श्री श्रीयादे माता ने कहा कि इस धरती का भगवान तुम्हारा पिता नही कोई और है। प्रहलाद ने श्री श्रीयादे माता को कहा की अगर तुम्हारे भगवान ने इन बिल्ली के बच्चो को नही बचाया तो मेरा पिता तुम्हे मौत की सजा देगा।
श्री श्रीयादे माता पुनः भगवान का जाप करने लगी, थोड़ी ही देर में हरि महिमा का चमत्कार हुआ। आग की न्याव के नीचे से पाताली गंगा निकली और दहकती हुई आग को शान्त कर दिया। मिटटी के सारे मटके पक गए पर एक मटका कच्चा रह गया, जिसमें बिल्ली के बच्चे जीवित निकले ।
प्रहलाद ने अपनी आँखों के सामने भगवान की महिमा देखी और चकित रह गया। उसने श्री श्रीयादे माता के पैर पकड़कर माफी मांगी और कहा की आज से आप मेरी धर्म गुरु हो। आप मुझे भक्ति का मार्ग सिखाओ।
इसी दिन से सनातन धर्म के लोग शीतला सप्तमी मनाने लगे और प्रहलाद को भक्त प्रहलाद कहा जाने लगा। श्री श्रीयादे माता ने भक्त प्रहलाद को धर्म की शिक्षा प्रदान की। भक्त प्रहलाद राजमहल में जाकर नित्य प्रतिदिन हरि जाप करने लगा। हिरण्यकश्यप को जब यह पता चला की मेरा पुत्र हरि का नाम ले रहा है, तो उसने प्रहलाद को राजमहल से नीचे फेंका, ऊंचे पहाड़ो पर बांधकर नीचे गिराया, जहरीले सांपो से डसवाया, जहर पिलाया एवं नाना प्रकार के अत्याचार किये लेकिन हर बार हरि कृपा और श्री श्रीयादे माता की कृपा दृष्टि से प्रहलाद बच जाता।
एक दिन हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका के साथ प्रहलाद को दहकती अग्नि में बिठा दिया। भक्त प्रहलाद ने हरि जाप शुरू कर दिया। होलिका जलकर भस्म हो गई। भक्त प्रहलाद को भगवान ने फिर से बचा लिया, तभी से सनातन धर्म मे होली का त्यौहार मनाया जाने लगा।
एक दिन हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रहलाद को खम्बे से बांध दिया और कहा कि आज कितना भी हरि का जाप कर लेना तेरा भगवान तुझे बचाने यहाँ मेरे सामने नही आएगा। उसने अपनी म्यान से तलवार निकाली और भक्त प्रहलाद पर प्रहार करने लगा, उसी समय भगवान नरसिंह रूप धारण किए हुए खम्भा तोड़कर प्रकट हुए। भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप को पकड़कर अपनी जांघो के बीच बिठाया और अपने नाखूनों से उसका पेट चीरकर अत्याचारी हिरण्यकश्यप का वध कर दिया। पूरी प्रजा श्री श्रीयादे माता और भक्त प्रहलाद की जय जयकार करने लगी।
जनता ने प्रहलाद को अपना राजा बनाया। पूरे राज्य में सत्य और धर्म की पुनः स्थापना हुई। इस प्रकार श्रीयादे माता ने भक्त प्रहलाद को भक्ति का मार्ग दिखाकर भक्त प्रहलाद के माध्यम से अत्याचारी हिरण्यकश्यप का वध करवाकर धर्म की पुनः स्थापना करवाई।
सभी धर्म प्रेमी बंधुओ को प्रति वर्ष माघ शुक्ल दूज को श्रीयादे माता की जयंती मनानी चाहिए और घर घर मीठा पकवान बनाकर श्री श्रीयादे माता के भोग लगाना चाहिए। महिलाओं को प्रत्येक गुरुवार को श्री श्रीयादे माता का व्रत रखकर आराधना करनी चाहिए।

